चालाक किसान और राक्षस
- जम्मू कश्मीर
कश्मीर के एक गांव में, एक गरीब किसान रहता था। वह सदा अपनी जमीन होने का सपना देखता था। एक दिन उसने गांव के मुखिया से बंजर भूमि का टुकड़ा उधार माँगकर उसे उपजाऊ बनाने का निश्चय किया। मुखिया ने उसे गाँव के बाहर की बंजर भूमि का एक टुकड़ा दे दिया।
शीघ्र ही कड़ी मेहनत से किसान ने खेत को खेती योग्य बना दिया।
एक शाम वह फसल के विषय में सोचता हुआ अपनी जमीन से वापस घर लौट रहा था। रास्ते में, गहरे धुँए से उसकी आँखें भर गई और वह रास्ता भटक गया। अंधेरा घिर आया था। उसे लालटेन लिए कुछ लोग दिखाई पड़े। उसने उन लोगों को रोककर कहा, "मैं रास्ता भटक गया हूँ। क्या तुम लोग मुझे रास्ता दिखा सकते हो?"
उन आदमियों ने उसे उसके गांव पहुँचाकर उसे बताया, हे भले मनुष्य यह सब उस राक्षस का किया धरा है। जिस जमीन पर तुमने कब्जा किया है, उसका असली मालिक वही है।"
किसान यह सुनकर चौंक गया। अगली शाम जब वह अपनी जमीन पर गया, तो राक्षस उसके सामने प्रकट हो गया। बिना किसी डर के किसान ने उसका अभिवादन करते हुए कहा, "महोदय! मेरी जमीन पर आपका स्वागत है। मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ?"
राक्षस क्रोधित होकर बोला, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, मेरी जमीन को अपनी कहने की?"
नम्रतापूर्वक किसान ने कहा, "पर हमारे मुखिया ने तो नहीं बताया कि यह जमीन आपकी है"
राक्षस ने कहा, "वह नहीं कहेगा, पर यह जमीन मेरी है"।
"कोई बात नहीं श्रीमान! मैं आपकी जमीन जोदूँगा और आपको किराया दूंगा। कृपया मुझे बताएँ कि मुझे कितना किराया देना है?"
राक्षस को किराए की कोई जानकारी नहीं थी, इसलिए उसने कहा, "मुझे अपनी उपज का एक हिस्सा दे देना।"
"किसान ने फिर पूछा, "आप उपज का निचला हिस्सा लेंगे या ऊपर का?"
राक्षस ने चालाकी से कहा, "जाहिर सी बात है, मैं ऊपर का आधा हिस्सा लूंगा।" किसान मान गया। उसने शलजम की खेती करने का निश्चय किया। इसका मतलब कि राक्षस को सिर्फ पत्तियां मिलेंगी और शलजम नहीं।
सही समय पर, अंकुर फुटे और धीरे-धीरे फसल तैयार हुई। किसान ने शलजम को जमीन से उखाड़ा। पत्तियों को राक्षस के सामने रहते हुए कहा, "श्रीमान्, यह रहा आपका ऊपरी आधा हिस्सा।"
राक्षस प्रसन्न होकर, इंसान के वेष में पत्तियों को लेकर बाजार गया। घण्टों बीत
गए। पत्तियां सूखने लगीं, पर कोई उन्हें खरीदने नहीं आया। यह समझकर कि उसे
मूर्ख बनाया गया था, उस राक्षस ने किसान को सबक सिखाने की ठानी।
अगली खेती से पहले, वह किसान के पास गया और बोला, "इस बार मुझे उपज के नीचे का हिस्सा चाहिए।"
किसान खुशी-खुशी मान गया और उसने जौ बोने का निश्चय किया। जौ तैयार होने पर किसान ने ऊपरी हिस्सा- जौ अपने हिस्से रखा, जिससे जड़ और ठूंठ राक्षस के हिस्से में रह गए। अपना हिस्सा लेकर बाजार जाने के बाद, राक्षस को समझ आया कि किसान ने फिर उसकी आँखों में धूल झोंकी थी।
राक्षस बहुत कुद्ध हुआ। ऊपर से शांत रहकर उसने किसान को सबक सिखाने का निश्चय किया। किसान के पास जाकर उसने कहा, "अगली बार न तो मैं ऊपर का हिस्सा लूंगा और न ही नीचे का, मैं बीच का हिस्सा लूंगा।" किसान मन ही मन खुश हो गया। इस बार उसनें मक्का लगाने का निश्चय किया उसने मक्का बोया। फसल अच्छी हुई थी। मक्का लगा। फसल कटने के बाद, किसान ने बीच का हिस्सा- डंठल राक्षस के लिए रख दिया और समृद्ध मक्के अपने लिए रख लिए।
राक्षस किसान की चालाकी समझकर भी चुप रहा। वह किसान की बुद्धि के सामने हार मान चुका था। उसने कहा, "मैं अपनी हार स्वीकार करता हूँ। मुझे जमीन और फसल की कोई जानकारी नहीं है। तुम इस जमीन के सही हकदार हो। अब से यह पूरी तरह तुम्हारी हुई।
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