टारजन की कहानी

 टारजन की कहानी


1. तुम जिस टारजन के किस्से पढ़ते या देखते हो, उसकी रचना की है एक रहस्यवादी लेखक एडगर राइस हागार्थ बरो ने।

2. बरो ने टारजन के चरित्र में अपनी काल्पनिक कहानियां भी जोड़ी हैं जबकि टारजन के रूप में बरो ने जिसे चित्रित किया है वे मिडलिन।

3. एडगर राइस हागार्थ बरो ने कानूनी दांवपेचों से बचने के लिए ने उसका नाम टारजन रख दिया।

4. तुम्हारी कामिक्स की दुनिया में यही एक ऐसा पात्र है, जो सत्य है। टारजन की अधिकांश कहानियां मिडलिन के जीवन की सच्ची कहानियां हैं।

5. मिडलिन यानी कि टारजन इंग्लैण्ड में पैदा हुआ सन् 1856 में। वह बचपन से ही स्वतंत्र विचारों व घुमक्कड़ी प्रवृत्ति का था।


तुम्हें टारजन के बहादुरी भरे कारनामें बहुत अच्छे लगते हैं। यदि तुम टारजन की जगह हो तो क्या इतनी कठिन परिस्थितियों में बिना घबराए, दुश्मनों का सामना कर सकते हो, दूसरों की भलाई के लिए अपनी जान जोखिम में डाल सकते हो ? तुम जिस टारजन के किस्से पढते या देखते हो, उसकी रचना की है एक रहस्यवादी लेखक एडगर राइस हागार्थ बरो ने। बसे ने टारजन के चरित्र में अपनी काल्पनिक कहानियां भी जोड़ी हैं जबकि टारजन के रूप में बरो ने जिसे चित्रित किया है वे मिडलिन हैं। कानूनी दांवपेचों से बचने के लिए बरो ने उसका नाम टारजन रख दिया। तुम्हारी कामिक्स की दुनिया में यही एक ऐसा पात्र है, जो सत्य है। 

टारजन की अधिकांश कहानियां मिडलिन के जीवन की सच्ची कहानियां हैं। मिडलिन इंग्लैण्ड में पैदा हुआ सन् 1856 में। वह बचपन से ही स्वतंत्र विचारों व घुमक्कड़ी प्रवृति का था। मां-बाप का कहना नहीं मानता था। पढ़ने में उसका मन नहीं लगता था। जब वह 11 वर्ष का हुआ तो पिता ने उस पर सख्ती शुरू कर दी। उसकी आवारगी पर रोक लग गयीं। आजाद ख्यालों वाला मिडलिन एक दिन घर छोड़कर भाग खड़ा हुआ। वह सागर तट पर पहुंचा तो देखा एक जहाज कहीं जा रहा है। वह उसी जहाज में सवार हो गया। संयोग से वह जहाज भारत आ रहा था। ग्यारह वर्ष के मिडलिन ने उसी से यात्रा प्रारम्भ की। 

जहाज अभी समुद्री यात्रा में ही था कि एक दिन भयंकर तूफान आ गया। तूफान इतना भयंकर था कि जहाज समुद्र में डूब गया। जहाज के सभी लोग मारे गए किन्तु किशोर मिडलिन ने एक लकड़ी के फट्टे के सहारे समुद्र पार किया और रेत पर चल कर एक टापू में पहुंचा। उसे थकान व तेज भूख लगी और जब वह जंगल में फल खोज रहा था तो ढेर सारे बंदरों ने उसे घेर लिया। बिना पूंछ वाले बंदर सभ्य व अहिंसक निकले। उन्होंने मिडलिन को खाने के लिए फल दिए और अपने दल में शामिल कर लिया। बीमार होने पर बंदरों ने उसकी खूब सेवा की। बंदर, मिडलिन का खूब आदर करते और उसकी बात मानते। 6 साल तक मिडलिन इन्हीं वानरों के साथ रहा। फिर एक दिन घूमते घामते वह हब्सियों के एक गांव में पहुंच गया। हब्सियों ने छुटपुट विरोध के बाद उसे अपने गांव में ठिकाना दे दिया। वह पांच साल तक अफ्रीका के इन हब्सियों के साथ रहा। उसने एक हब्सी युवती से विवाह भी किया। उसके चार बच्चे हुए । 1880 तक वह हब्सियों के साथ रहा और उनकी ओर से दूसरे हब्सियों ने कई युद्ध लड़े।

एक दिन अचानक मिडलिन संब कुछ छोड़कर भाग खड़ा हुआ। वह लगातार चलता रहा। लम्बी दूरी तयकर वह एक गांव में पहुंचा जहां कुछ सभ्य जंगली जाति के लोग रहते थे। वह चार साल तक यानी 1884 तक इन्हीं लोगों के साथ रहा। एक दिन मिडलिन यहां से भी भाग खड़ा हुआ और फ्रांसीसियों की एक बस्ती में पहुंचा। इस बस्ती के लोगों की सहायता से मिडलिन सूडान पहुंचा और फिर सन् 1885 का वह दिन भी आया जब मिडलिन, इंग्लैण्ड की अपनी मातृभूमि में पहुंचने में सफल हो गया। इंग्लैण्ड में जिसने भी उसके संघर्ष की गाथा सुनी, रोमांचित हुए बिना नहीं रह सका। सरकार ने उसे लार्ड की उपाधि दी। यहीं उसने पुनः शादी की। उसका एक बेटा एडबिन जार्ज 1889 में पैदा हुआ।

मिडलिन ने अपनी साहसिक यात्रा का बड़ा रोमांचकारी वर्णन डेढ़ हजार पृष्ठों में लिखा और उसे एक वसीयत के साथ सील बन्द कर दिया कि उसकी मृत्यु के बाद, उसकी रचना उसके नाम से छापी जाए। वर्ष 1919 ई. में मिडलिन की मृत्यु हो गई। वसीयत के अनुसार जब रोमांचकारी दास्तान छापी गई तो लोगों को उसके हैरतंगेज किस्से बहुत भाए। उस समय के सभी अखबारों में उसके है रतंगेज किस्से छप रहे थे तो एडगर राइस बरो नामक एक लेखक ने मिडलिन के किस्सों को कामिक्स के रूप में छापने की सोची। उसने कानूनी झंझटों और रायल्टी देने से बचने के लिए मिडलिन का नाम बदलकर 'टारजन' रख दिया और कामिक्स छाप दिए। टारजन के किस्से सारी दुनिया में लोकप्रिय हुए तो बरो ने मिडलिन के चरित्र में अपनी कल्पनाएं भी जोड़ दीं। आज 'टारजन' दुनिया भर के बच्चों, बड़ों का बहुत चहेता है। 'टारजन' पर अनेकों फिल्में, धारावाहिक बन चुके हैं तथा दुनिया की सभी भाषाओं में उसके साहस के कारनामों के कामिक्स करोड़ों की संख्या में बिकते हैं।

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